'द प्राफेट' : अलमुस्तफा उसका नाम था- भाग दो...
जब प्रेम तुम्हें अपनी ओर बुलाए तो उसके पीछे-पीछे जाओ, हालांकि उसकी राहें टेढ़ी-मेढ़ी और मुश्किल हैं। जब उसके पंख तुम्हें ढंक लेना चाहें तो खुद को उसके हवाले कर दो। भले ही उन पंखों छुपी तलवार तुम्हें घायल कर दे। और वो जब तुमसे बोले तो उस पर भरोसा करो। भले ही उसकी आवाज तुम्हारे सपनों को चकनाचूर कर डाले। जसे तूफान किसी बगिया को उजाड़ डालता है। क्योंकि प्रेम जिस तरह तुम्हें मुकुट पहनाएगा, ताजपोशी करेगा, उसी तरह वो तुम्हें सूली पर भी चढ़ाएगा। वो तुम्हें पनपने देगा और तुम्हारी काट-छांट भी करता रहेगा। प्रेम जिस तरह तुम्हारी ऊंचाइयों तक चढ़कर सूरज की किरणों में कांपती हुई तुम्हारी कोमल कोंपलों की देखभाल करता है। उसी तरह वो गहराई तक उतरकर जमीन में दूर तक फैली हुई तुम्हारी जड़ों को भी झकझोर सकता है। अनाज के बालों की तरह वह तुम्हें अपने अंदर भर लेता है। तुम्हें नंगा करने के लिए कूटता है। भूसी दूर करने के लिए तुम्हें फटकता है। पीसकर तुम्हें सफेद बनाता है और नरम बनाने तक तुम्हें गूंथता है। और फिर तुम्हें अपनी पवित्र आग पर सेंकता है जिससे तुम ईश्वर की थाली की पावन रोटी बन सको। प्रेम तुम्हारे साथ ये सारा खेल इसलिए करता है ताकि तुम अपने दिल के रहस्यों को जान सको। समझ सको। और उसी समझ और ज्ञान से जिंदगी की दुनिया का एक हिस्सा बन सको। लेकिन अगर किसी डर से तुम केवल प्रेम की शांति और उसके आनंद की ही कामना करते हो वही चाहते हो तो तुम्हारे लिए भला होगा कि तुम अपना नंगापन ढक लो और प्रेम के खलिहान से बाहर निकल जाओ। ऐसी दुनिया में घर बनाओ जहां मौसम आते-जाते न हों, जहां तुम हंसो लेकिन पूरी हंसी नहीं, और रोओ तो, लेकिन पूरे आंसुओं के साथ नहीं। प्रेम किसी को अपने आपके सिवा न कुछ देता है, न किसी से अपने आप के सिवा कुछ लेता है। प्रेम न तो किसी का मालिक बनता है, न ही किसी को मालिकाना हक देता है। क्योंकि प्रेम, प्रेम में ही पूरा हो जाता है। जब तुम प्रेम करो तो ये मत कहो कि ईश्वर मेरे दिल में है बल्कि कहो कि मैं ईश्वर के दिल में हूं। और कभी न सोचना कि प्रेम का रास्ता तुम तय कर सकते हो, क्योंकि प्रेम अगर तुम्हें प्रेम के काबिल समझता है तो वो खुद तुम्हारी राह तय करता है। प्रेम खुद को पूरा करने के अलावा और कुछ नहीं चाहता। अगर तुम प्रेम करो और तुम्हारे दिल में इच्छाएं उठें ही तो वे इस तरह की इच्छाएं हो-मैं पिघल जाऊं बहते हुए झरने की तरह। रात को गीतों से भर सकूं। मैं इंतिहायी नाजुकी की तकलीफ महसूस कर सकूं। प्रेम की अपनी ही समझ से घायल हो सकूं। अपनी इच्छा से और हंसते-हंसते अपना खून बहता देख सकूं। सुबह उठूं तो दिल के डैने फैले हुए हों और प्रेम से लबरेज एक और दिन पाने के लिए शुक्रगुजार हो सकूं। दोपहर को आराम कर सकूं और प्रेम के परमानंद में डूब सकूं। दिन ढलने पर अहसानों से भरा हुआ दिल लेकर घर लौट सकूं और फिर रात में प्रिय के लिए इबादत और होठों पर उसकी तारीफ के गीत लेकर सो सकूं।
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3 comments:
bhut badhiya. jari rhe.
इतना बढ़िया और तर्कसंगत ढ़ंग से इस महत्वपूर्ण बात को प्रस्तुत करने के लिये साधुवाद!
यहाँ आपने 'फ़ुल स्टाप' की कमियाँ गिनाई हैं; पूर्ण विराम (खड़ी पाई') के लाभ भी बताये जा सकते हैं। जैसे कि:
१) देवनागरी के अधिकांश वर्ण खड़ी पाई पर ही आधारित हैं। इसलिये खड़ी पाई का वाक्यान्त सूचक के रूप में प्रयोग अधिक तर्कसंगत है।
२) खड़ी पाई पहले से ही प्रचलन में है तो फ़िर उसके किसी विकल्प की आवश्यकता ही क्या है?
३) 'फुल स्टाप' की अपेक्षा खड़ी पाई वाक्य के अन्त को अधिक स्पष्टता से व्यक्त कर पाती है। इससे तेज गति से पढ़ने में आसानी होती है।
४) 'छवि से टेक्स्ट' में बदलने वाले साफ़्टवेयर प्रग्रामों को भी खड़ी पाई से सुविधा होगी क्योंकि 'फ़ुल स्टाप' के गुम होने (धुंधला होने के कारण) या नुक्ते की तरह समझे जाने, या 'अं' की मात्रा की तरह समझे जाने की गलतफ़हमी होने की भरपूर गुंजाइश है।
Aasha karta hun ki aap puri tarha prakashit karenge.
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